• Friday, November 22, 2024

"दुखांतिका" के लेखक नवनीत नीरव के साथ साक्षात्कार

'दुखांतिका' के लेखक नवनीत नीरव के साथ साक्षात्कार में जानें उनकी कहानी और लेखक के बारे में रोचक जानकारी |
on Sep 14, 2023
"दुखांतिका" के लेखक नवनीत नीरव के साथ साक्षात्कार | फ्रंटलिस्ट

फ्रंटलिस्ट: आपके अनुसार, हिंदी दिवस क्यों मनाना चाहिए और हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करना क्यों महत्वपूर्ण है?

नवनीत नीरव: इस विविधतापूर्ण देश में जहां न केवल भगौलिक वरन सांस्कृतिक तथा भाषाई विविधता एवं उनकी बहुलता है ( और वे समृद्ध भी हैं)। ऐसे में महात्मा गांधी के विचार बेहद प्रासंगिक हैं के विविधताओं एवं विभिन्नताओं से भरे इस देश में एक भाषाई सूत्र ऐसा होना चाहिए जो इन्हें एक साथ बांधे रख सके। अंग्रेज़ी चूंकि आयातित है जबकि हिंदी जिसकी उत्पत्ति हिंदुस्तान की भाषाओं से ही हुई है इसमें पूर्णतया सक्षम है। हिंदी इन मायनों में भी अनूठी है कि वह हिंदुस्तान की सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करती है । यह अलग अलग राज्यों की भाषा एवं बोलियों के शब्दों तथा चेतना से परिपूर्ण है, समृद्ध हैं। इन अर्थों में हिंदी एक समावेशी भाषा है। और इसलिए हिंदी दिवस की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।

फ्रंटलिस्ट: आपकी पुस्तक "दुखांतिका" में हिंदी भाषा के महत्व को कैसे प्रकट किया गया है?

नवनीत नीरव: सीधे सीधे कहा जाय तो यह कथा पुस्तक या कोई भी कथा पुस्तक या फिक्शन किसी भाषा को बहुत रूढ़ अर्थों में प्रोत्साहित नहीं करती। किंतु जब वह व्यक्ति या पाठक की संवेदनाओं को छूती है, उनके मर्म को जब स्पर्श करती है तो इस संवेदना के आदान प्रदान का हेतु भाषा ही बनती है। और स्पष्टतः भाषा जो संवेदना का सेतु बने वह स्वयं महत्वपूर्ण हो उठती है क्यों कि अभिव्यक्ति का माध्यम है।

फ्रंटलिस्ट: आपकी कहानियाँ समाज के सबसे कमज़ोर और हाशिए पर मौजूद लोगों को कैसे दर्शाती हैं? और क्या आपको लगता है कि ये कहानियाँ समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम हैं?

नवनीत नीरव: मेरी कहानियों में मध्य वर्ग, निम्न मध्य वर्ग तथा सामाजिक पदानुक्रम में जो पीछे रह गए हैं वे ही मुख्य भूमिका में हैं। 

मैं समझता हूं कि कहानियां कविताएं या साहित्य सामाजिक बदलाव तात्कालिक रूप से ना भी लाती हों तो भी उनके लिए जमीन अवश्य तैयार करती हैं। खाद पानी बनती हैं। मैंने जिस जीवन को बहुत करीब से देखा है वही मेरी कहानियों में हैं। अगर यह जीवन, चरित्रों का संघर्ष किसी पाठक को विचार हेतु उद्वेलित करे, उनकी संवेदनाओं में थोड़ी भी सुगबुगाहट ला सके तो मुझे लगता है यह एक लेखक के लिए उपलब्धि है।

फ्रंटलिस्ट: आपने "दुखांतिका" में ऐसी ही कहानियाँ लिखने का निर्णय क्यों लिया, आपको इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली?

नवनीत नीरव: दुखान्तिका की कहानियाँ मेरी लेखकीय यात्रा की शुरुआती कहानियाँ हैं। एक तरह से खानाबदोश सी यात्रा रही है अब तक की। बिहार और झारखण्ड में बचपन बीता और स्कूली शिक्षा हुई। शिक्षा और विकास के क्षेत्र से जुड़े होने की वजह से अलग-अलग राज्यों, कस्बों, शहरों और सबसे ज्यादा में रहा हूँ। मसलन बिहार और झारखण्ड के अलावे ओडिसा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान आदि राज्यों में सबसे अधिक काम करने का मौका मिला। जिसकी वजह से इन राज्यों के सूदूर ग्रामीण इलाकों के समाज और संस्कृति से जुड़ने और उन्हें समझने या कहें तो जीने का मौका मिला। अच्छे लोग मिले और उन अंचलों के समृद्ध साहित्य से रु-ब-रु होने का मौका मिला। जो भी खुरदुरे या सुखद अनुभव रहे और जो मेरी स्मृतियों में ठहर पाए ,भिन्न-भिन्न अंतराल पर कहानियों के रूप में पन्नों पर उतरे। हर रचनाकार का एक लोकेल होता है। मेरा भी रहा है, लेकिन एक से अधिक। इसलिए दुखांतिका की कहानियाँ किसी एक क्षेत्र विशेष या उनके मुद्दों पर आधारित न होकर अलग-अलग सामाजिक- सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर  रची गई हैं। 

फ्रंटलिस्ट: क्या आपने "दुखांतिका" में अपने लेखन के माध्यम से समाज में नैतिकता और सामाजिक सुधार को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है?

नवनीत नीरव: हालाँकि मैं शिक्षा और विकास के क्षेत्र में विगत एक दशक से ज्यादा समय से कार्य कर रहा हूँ, इसलिए इस बात को कह सकता हूँ कि नैतिक और सामाजिक सुधार क्रमिक हैं। ये बदलाव धीरे-धीरे ही संभव हो पाते हैं। अपनी कहानियों में मेरी कोशिश है कि समाज के उन कोने की बातें की जाएं जो अबतक  प्रतिनिधि साहित्य का हिस्सा नहीं बन पायी हैं। कहानियाँ लिखते वक्त मेरी कोशिश यही होती है कि जो अनुभव में है उसे प्रामाणिक रूप से कहानी में लिखा जाए। बाकी उसका क्या असर होगा या वह किसे और कैसे प्रोत्साहित करती हैं ये कभी लेखक की मंशा नहीं होती।

फ्रंटलिस्ट: क्या ऐसे कोई लेखक या लेखिका हैं जिनका काम आपको पसंद आता है, या कोई ऐसा व्यक्ति है जो आपको प्रेरित करता हो? अगर हाँ, तो कौन है और क्यों?

नवनीत नीरव: फणीश्वरनाथ रेणु और विजयदान देथा ऐसे दो लेखक हैं जिनके अधिकांश लेखन को पढ़ने का मौका मिल पाया है। दोनों लेखकों में एक बात जो मुझे कॉमन लगती है वह है कहानी कहने का हुनर। मेरे विचार से ये दोनों लेखक कहानी के मास्टरक्राफ्टसमैन रहे हैं। 

फ्रंटलिस्ट: आपके अनुसार, हिंदी साहित्य का भविष्य कैसा होना चाहिए और कैसे हम इसे बेहतर बना सकते हैं? हिंदी दिवस के अवसर पर आप नए लेखकों और लेखिकाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?

नवनीत नीरव: हिन्दी का परिक्षेत्र और परिदृश्य काफी विविधरपूर्ण और विवधरंगी है। हालाँकि हिन्दी के प्रतिनिधि साहित्य की इस सौ वर्षों से अधिक की यात्रा में बहुत कुछ लिखा पढ़ा गया है। फिर भी अभी तमाम सूदूर और सीमांत क्षेत्रों और वर्गों की कहानियाँ कही जानी शेष हैं। जो वहाँ के लेखकों को मिलने वाले मौकों पर भी निर्भर करता है। हिन्दी साहित्य में ऐसे लेखकों और लेखन को अधिक से अधिक सहयोग करने और आगे लाने के मौकों को बनाए जाने की आवश्यकता है। कहानी और कविता अवश्य ही केन्द्रीय विधाएं हैं । परंतु अन्य विधाओं के लेखन को भी प्रोत्साहित करने और उन्हें पहचान दिलाने की भी आवश्यकता महसूस होती है। 

कुछ ऐसी ही स्थिति हिन्दी में लिखे जाने वाले बच्चों के साहित्य को लेकर भी देखने को मिलता है। जो एकाध-शहरों या राज्यों तक सिमट गया है। चुनिंदा लेखक पूरी हिन्दी भाषी क्षेत्रों के बच्चों का अनुभव लिखने की कोशिश में हैं। बाल साहित्य में जो सबसे बड़ी समस्या समझ में आई है वह यह है कि युवा लेखन को प्रोत्साहित करने और उनके काम को समुचित पहचान दिलाने के मौके और कोशिशें विरले हैं। 

जरूरत है ऐसा साहित्य लिखा जाए जिसमें सभी का प्रतिनिधित्व हो। मैं खुद भी एक युवा लेखक हूँ। फिर भी साथी लेखक लेखिकाओं से यही कहना चाहूँगा कि अधिक से अधिक अच्छा साहित्य पढ़ें और अच्छा और विविधतापूर्ण साहित्य रचने की कोशिश करते रहें।  

Post a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0 comments

    Sorry! No comment found for this post.