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Interview with डॉ अनिल चतुर्वेदी, ऑथर ऑफ़ ‘चिकित्सा और हम’

उत्तर भारत की विभिन्न राजधानियों में अध्ययन किया, उसी दौरान साप्ताहिक ‘हिंदुस्तान’ के संपादक श्री मनोहर श्याम जोशी का कथन आप हिंदी में जनमानस को स्वास्‍थ्य के प्रति सचेत करने का संकल्प लीजिए।
on Apr 06, 2023
Interview with डॉ अनिल चतुर्वेदी, ऑथर ऑफ़ ‘चिकित्सा और हम’

डॉ अनिल चतुर्वेदी (एमबीबीएस, एमडी), चिकित्सा उद्योग में एक विशिष्ट नाम है। इस चिकित्सा सलाहकार सह हृदय रोग विशेषज्ञ ने 2008 से 2010 तक इंडियन कॉलेज ऑफ फिजिशियन के वाइस-डीन के रूप में भी काम किया है। डॉ चतुर्वेदी को चिकित्सा विज्ञान में उनके शानदार योगदान के लिए इंडियन एकेडमी ऑफ क्लिनिकल मेडिसिन 2009-10 के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया था।

वह नई दिल्ली के केंद्र में स्थित एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट और रिसर्च सेंटर और इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल सहित कई अस्पतालों के सलाहकार रहे हैं। अस्‍पतालों में चिकित्‍सा सलाहकार होने के अलावा, डॉ. अनिल ने बहुत लंबे समय तक प्रमुख समाचार पत्र 'टाइम्‍स ऑफ इंडिया' में चिकित्‍सा सलाहकार के रूप में लिखकर अपनी चिंता को बढ़ावा दिया।

कुशल हृदय रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य के मैक्रो इकोनॉमिक्स के राष्ट्रीय आयोग के पूर्व सदस्य भी हैं, जो सरकार के अधीन एक महत्वपूर्ण उद्यम है। भारत की। इसके अलावा, डॉ अनिल को उनकी सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर दिए गए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।


फ्रंटलिस्ट- ‘चिकित्सा और हम’ लिखने के लिए आपको कहाँ से प्रेरणा मिली और आपने आधुनिक जीवन-शैली के रोगों पर ध्यान कें‌द्रित करना क्यों चुना? 

डॉ अनिल -  ‘चिकित्सा और हम’ के अधिकतर लेख साप्ताहिक ‘हिंदुस्तान’ में 1943 में स्वास्‍थ्य स्तंभ ‘अपने से मिलिए’ के आलेख हैं। श्री मनोहर श्याम जोशी साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक थे, उन्होंने मुझे हिंदी में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया एवं मेरे 50 से अधिक लेख 1970-71 में छापे। वे मेरे साहित्यिक गुरु थे। लगभग 30 वर्षों तक साप्ताहिक के लिए लेख सहेजकर रखना कठिन था। लेकिन तभी श्री बालस्वरूप राही, जो उस समय सहायक संपादक थे उन्होंने यह सुझाव दिया कि उन लेखों को पुस्तक का रूप दिया जाए। ‘प्रभात प्रकाशन’ के संस्‍थापक बाबूजी आदरणीय श्याम सुंदरजी ने मेरे इस स्वप्न को साकार किया। वे युवा लेखकों को प्रोत्साहित करते थे मेरे आत्मीय संबंध उनसे प्रगाढ़ होते गए। पिछले दो दशकों से हमारे देश में जीवन-शैली से संबंधित रोगी जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल के दौरे, मोटापा आदि एक महामारी के रूप में बढ़ रहे हैं। ये रोग हमारे खान-पान, धूम्रपान, शराब, शारीरिक श्रम की कमी आदि के कारण पनपते हैं, अतः आम जनता को स्वास्‍थ्य के प्रति सचेत एवं सजग कर हम इन रोगों पर नियंत्रण कर सकते हैं।

फ्रंटलिस्ट- आपकी राय में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय की स्थिति जैसी आधुनिक जीवन-शैली की बीमारियों के बढ़न के मुख्य कारण क्या हैं? हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं? 

डॉ अनिल - आधुनिक जीवन-शैली रोग बढ़ने का मुख्य कारण है अपनी परंपरागत जीवन-शैली को भूलकर पश्चमी सभ्यता के चकाचौंध में उलझ गए धूम्रपान, शराब, शारीरिक श्रम की कमी, मानसिक तनाव आदि ने इन रोगों को जन्म दिया है। ये हमारी गलत जीवन-शैली के कारण है। अतः हमें धूम्रपान, शराब की लत आदि को तिजांजल‌ि देनी होगी। प्रतिदिन 30 मिनट, सप्ताह में पाँच दिन टहलना श्रेष्ठ व्यायाम है। हमारा आहार संतुलित हो। हम गेहूँ, चावल, मैदा, कार्बोहाइड्रेट का 60 प्रतिशत से अधिक अपने आहार में ग्रहण करते हैं। हमें अपने आहार में चना, बाजरा, मिश्रित आटे की रोटी आदि खानी चाहिए, चार बादाम, अखरोट, मूँगफली, भुने हुए चने, फल तथा दो हरी सब्जियों, दही एवं दूध तथा करना चाहिए। लगभग 7 घंटे की नींद भी स्वास्‍थ्य के लिए लाभदायक है। 

फ्रंटलिस्ट- आप कहते हैं कि डॉक्टरों और मरीजों के बीच आपसी विश्वास टूट रहा है। डॉक्टर इस भरोसे का पुनर्निर्माण कैसे कर सकते हैं, और इस प्रक्रिया में मरीज क्या भूमिका निभाते हैं? 

डॉ अनिल - वर्तमान दौर में सामाजिक मान्यताएँ बिखर रही हैं तथा नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, ऐसे समय में यह आवश्यक है कि चिकित्सक विपरीत या विषम परिस्थितियों वाले रोगी के उपचार में तन-मन तथा बहुमूल्य समय लगाता है, इस पृष्ठभूमि का समाज सही आकलन करे। यह तभी संभव है, जब चिकित्सा विज्ञान भी प्रगति से समाज की आकांक्षाएँ एवं आशाएँ इतनी न बढ़ जाएँ कि हर मरीज चिकित्सक से अपने निरोग होने की गारंटी माँगने लगे। चिकित्सा अनिश्चितता का विज्ञान तथा संभावनाओं की कला है। हमारी समस्या है कि हम चिकित्सा विज्ञान की गति को आवश्यकता से अधिक प्रभावी समझ रहे हैं तथा इसकी सीमाओं, वास्तव‌िकता तथा संदर्भकी ओर हमारा ध्यान नहीं है। इन परिस्थितियों में चिकित्सक और रोगी के बीच आपसी संबंध तभी संभव है, जब दोनों के संवेदनशील संवाद सरसता एवं सहजता से स्थापित हो। संवाद जीवन का सार है, जो एक परिपूर्ण संवाद, सहयोग तथा विश्वसनीयता को जन्म देता है। अतः रोगी और चिकित्सक के पूर्ण तालमेल से ही स्वास्‍थ्य एवं विश्वसनीय की आधारशिला रखी जाएगी।

फ्रंटलिस्ट- आपको क्या लगता है कि प्रौद्योगिकी स्वास्‍थ्य सेवा में सुधार और बीमारियों को रोकने में क्या भूमिका निभा सकती है? 

डॉ अनिल - प्रौद्योगिकी ने स्वास्‍थ्य-सेवा में क्रांति उत्पन्न की है। आज स्वयं रोगी घर बैठे ही अपने रक्त में ग्लूकोज की जाँच तथा अपने रक्तचाप की जाँच कर तुरंत कारगर व ठोस कदम उठा सकता है। इंटरनेट वीडियो संवाद स्‍थापित कर कितने ही रोगियों ने कोविड के दौरान चिकित्सकों से परापर्शकर स्वास्‍थ्यलाभ अर्जित किया है। 

फ्रंटलिस्ट- आपने उल्लेख किया कि जीवन के पारंपरिक तरीके, जैसे शारीरिक श्रम और सादा जीवन, पश्चिमी सभ्यता के रंग मंे रँगे हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप आधुनिक जीवन-शैली की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। क्या आप इस घटना के बारे में विस्तार से बता सकते हैं; और इसने समाज के स्वास्‍थ्य एवंकल्याण को कैसे प्रभावित किया है? 

डॉ अनिल - पिछले तीन दशकों से उदारीकरण तथा औद्योगीकरण से मध्यमवर्गीय लोगों के आय में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। स्कूटर तथा कार का चलन इतना बढ़ गया कि 15-16 वर्षका बालक, जो कभी साइकिल चलाता था, वह आज 100 गज की दूरी तक जाने के लिए स्कूटर की सवारी कर लेता है। एक सामान्य नागरिक को भी लगभग 10 हजार कदम प्रतिदिन चलना चाहिए। आज कितने लोग ऐसा कर पाते हैं? आज किसी को परीक्षा में सफलता प्राप्त होने पर, उसको ज्ञान की पुस्तकें उपहार में देने की अपेक्षा हम किसी का पाँच सितारा होटल में पार्टी के लिए उत्साहित करते हैं। पहले घर पर जन्म दिवस की पार्टी दी जाती थी जिसमें घर के पारिवारिक व्यंजन मिठाइयाँ, हलवा इत्यादि के साथ ही परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न रहते थे, पर अब केक के बिना जन्मदिन ही असंभव है। केक व पेस्टी में मैदा, चीनी, वसा, मलाई सभी स्वास्‍थ्य के लिए हानीकारक हैं यह प्रचलन समाज में तेजी से बढ़ रहा है। यही कारण है कि मोटापा मधुमेह दिल के दौरे के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है, वरन दिल का दौरा हमारे देश में पाश्चात्य देशों की तुलना में दस वर्ष पहले अधिक उग्र रूप में देखा गया है। आज 25 से 30 वर्षके लगभग 25 प्रतिशत रोगी अस्पतालों में दाखिल होते हैं। किशोरावस्‍था के 30 प्रतिशत बच्चे मोटापे का शिकार हैं, जिसमें से 15 प्रतिशत बच्चे मधुमेह एवं 10 प्रतिशत उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हैं। यह है पश्च‌िमी समाज का अभ‌िशाप हमारे युवा वर्गके स्वास्‍थ्य पर।

फ्रंटलिस्ट- आपकी राय में आधुनिक जीवन-शैली की बीमारियों के इलाज में सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं, और इन चुनौतियों से निपटने के लिए डॉक्टर और मरीज एक साथ कैसे काम कर सकते हैं? 

डॉ अनिल - आधुनिक जीवन-शैली रोग के उपचार में सबसे बड़ी चुनौती आम जन को अपने स्वास्‍थ्य के प्रति उदसीनता का दृष्टिकोण 25 वर्ष की आयु के बाद अथवा जिन परिवारों में मोटापा, मधुमेह, दिल के दौरे या उच्च रक्तचाप के रोगी हैं, उन्हें अपने शरीर के सभी माप दर्जकी जानकारी हासिल करनी चा‌हिए। वजन कितना है, पेट का आकार तथा ग्लूकोज की मात्रा, रक्तचाप लिपिड प्रोफाइल। यदि किसी भी मानक में कोई त्रुटि है, उसे तुरंत ही चिकित्सक के परामर्शसे सामान्य स्तर पर लाएँ तथा आहार व जीवन-शैली में उचित परिवर्तन कर स्वस्‍थ रहें। प्रत्येक परिवार के सदस्य अपने स्वास्‍थ्य के माप दर्जका नियमित निरिक्षण करते रहे तथा न‌ियमित रूप से अपने चिकित्सक से परामर्शकरे तो जीवन-शैली से संबंधित रोगों से अपना बचाव कर सकते हैं। यदि हर नागरिक अपने स्वास्‍थ्य के प्रति जिम्मेदारी समझकर जीवन-शैली में कुछ आवश्यक बदलाव करे तो स्वस्‍थ भारत का सपना साकार हो सकता है। 

फ्रंटलिस्ट-  आपको एक स्वास्‍थ्य देखभाल पेशेवर बनने के लिए क्या प्रेरित करता है, और इस क्षेत्र में आपके अनुभव ने आधुनिक जीवन-शैली की बीमारियों और उनकी रोकथाम पर आपके दृष्ट‌िकोण को कैसे आकार दिया है? 

डॉ अनिल - सेवा एवं समर्पण की भावना ही वह साधना है, जिसके द्वारा जीवन-शैली रोग विशेषज्ञ बना जा सकता है। जीवन-शैली रोगों के दुष्परिणाम भयानक हैं, लेकिन उन रोगों से बचाव संभव है यदि हम जन-जन को अपने जीवन-शैली में छोटे-छोटे बदलाव कर सचेत कर सकते हैं। एक मैंने लगभग 1 हजार से अधिक लेख दूरदर्शन आकाशवाणी व स्वस्‍थ्य पत्रिकाओं में लिखा। मैं 10 पुस्तकें लिख चुका हूँ। विश्व स्वास्‍थ्य दिवस, विश्व धूम्रपान दिवस, विश्व मधुमेह दिवस, विश्व वयोवृद्ध दिवस पर प्रतिवर्ष जन-जागृति कार्यक्रम या संगोष्ठी आयोजित कर एक अपार संतोष की भावना बलवती होती है कि समाज के स्वास्‍थ्य में हमारी भी भूमिका है। यदि इन कार्यों के लिए राष्ट्रीय या प्रदेश स्तर पर सम्मान प्राप्त हो तो कुछ और अधिक करने की लगन तथा मनन और नमन से ऊर्जा, आनंद एवं उल्लास प्रदान करती है। मैं नियमित रूप से चिकित्सा के क्षेत्र में नई शोध को जन-जन तक पहुँचाने के कार्य में संलग्‍न हो इसके लिए प्रतिबद्ध हूँ।


फ्रंटलिस्ट-   आपकी किताब हिंदी में लिखी गई है। क्या आप स्वास्‍थ्य संबंधी जानकारी को लोगों के लिए उनकी मूल भाषा में सुलभ बनाने के महत्त्व पर चर्चाकर सकते हैं; और यह कैसे स्वास्‍थ्य संबंधी परिणामों में सुधार कर सकता है? 

डॉ अनिल -  उत्तर भारत की विभिन्न राजधानियों में अध्ययन किया, उसी दौरान साप्ताहिक ‘हिंदुस्तान’ के संपादक श्री मनोहर श्याम जोशी का कथन आप हिंदी में जनमानस को स्वास्‍थ्य के प्रति सचेत करने का संकल्प लीजिए। मैं चाहता हूँ कि आप हिंदी में लोगों को रोगों की जानकारी देकर एक पुण्य का कार्यकरेंगे। आप लेख लिखेंगे, फिर लोग पढें़गे, इससे आपके चिकित्सा ज्ञान में वृद्ध‌ि ही नहीं होगी, वरन आप रोगी से संवेदनशील संवाद स्‍थापित कर पाएँगे। यही वह कदम है, जो मैंने आत्मसात् किया, चिकित्सा को जन-जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। 80 प्रतिशत जनता हिंदी समझती है। हिंदी हमारी मातृभाषा है, यदि रोगी को उसकी ही सरल भाषा में रोग के बारे में विस्तार से बताया जाए तो उपचार में लाभ ही नहीं होता, वरन शीघ्र स्वस्‍थ्य-लाभ होता है। अब तो हिंदी में स्वास्‍थ्य विषयों की पढ़ाई कराने की शुरुआत भी मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सरकारों ने की है, ताकि ग्रामीण अंचल से आने वाले विद्यार्थी भी हिंदी में पाठ्यक्रम से चिकित्सक की डिग्री प्राप्त कर सकते हैं। मैं दैनिक जीवन में भी हिंदी को प्रथिमिकता देता हूँ, जैसे अभिवादन—नमस्कार से हिंदी में संवाद द्वारा रोगी से संवेदन संवाद स्‍थापित कर सभी समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है, फिर कुछ संस्कृत के श्लोक या शायरी या कविता के कुछ अंश बहुत ही प्रभावी सिद्ध होते हैं। मुझे यह बताते हुए गर्व है कि मैं एकाकी नेशनल बी.सी. राय सम्मान का पात्र हूँ, जिसे चिकित्सा और साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए यह सम्मान भारत सरकार द्वारा दिया जाता है। लेखन में अनेक पत्रकारों और साहित्यकारों से विचार-विमर्श के अनेक अवसर प्राप्त हुए जिससे मुझे हिंदी में स्वस्‍थ्यवर्धक संगोष्ठ‌ियों तथा परिचर्चाओं द्वारा जन-जन तक स्वास्‍थ्य संबंधी जानकारी पहुँचा कर स्वस्‍थ व निरोग जीवन जीने की आशा और भी प्रबल हुई।

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