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प्रभात कुमार - निर्देशक, प्रभात प्रकाशन


on Sep 02, 2022
प्रभात कुमार

प्रकाशक के बारे में

निर्देशक, प्रभात प्रकाशन

प्रभात कुमार जन्म: 27 मई, 1968, दिल्ली में।

हिंदी के प्रमुख प्रकाशन संस्थान ‘प्रभात प्रकाशन’ का संचालन कर रहे हैं, जो अब तक सात हजार से अधिक स्तरीय पुस्तकों का प्रकाशन कर चुका है। प्ैव्  9001रू2015 से प्रमाणित प्रभात प्रकाशन को सर्वाेत्कृष्ट पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए गत अनेक वर्षों से निरंतर पुरस्कृत किया जाता रहा है। वर्ष 2000 में फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ युवा प्रकाशक पुरस्कार’ से सम्मानित।

साहित्यिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा अभिरुचि के कारण हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों, पत्रकारों तथा साहित्य-सेवियों से आत्मीय संबंध हैं। भारतीय वाङ्मय का प्रचार करने तथा हिंदी को विष्वभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने के उद्देश्य से आपने अनेक बार विदेशों में पुस्तक प्रदर्शनियों का आयोजन किया तथा प्रवासी हिंदी लेखकों की पुस्तकें बड़ी संख्या में प्रकाशित की। वर्ष 1999 में लंदन में छठे, वर्ष 2002 में सूरीनाम में सातवें, वर्ष 2015 में भोपाल में नौवें एवं 2018 में मॉरीशस में आयोजित दसवें विश्व हिंदी सम्मेलनों में भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में प्रकाशकों का प्रतिनिधित्व किया। माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली भारत सरकार की केंद्रीय हिंदी समिति के सदस्य रहे (2014-17)।

जिस समय हिंदी की अधिकांश साहित्यिक पत्रिकाएँ एक-एक कर लुप्त होती जा रही थीं, आपने अगस्त 1995 में ‘साहित्य अमृत’ (मासिक) का प्रकाशन प्रारंभ किया, जो विद्वान् लेखकों और जिज्ञासु पाठकों के बीच संपर्क-सेतु का काम कर रही है। 

फ्रंटलिस्टः प्रभात प्रकाशन ने हिंदी साहित्य की दुनिया को क्लासिक हिंदी कहानियों की छवि को बदलने के लिए कैसे प्रभावित किया है?

प्रभातः दो-तीन दशक पूर्व हिंदी में सामान्यता साहित्य की विविध विधाओं, यथा-उपन्यास, कहानी, व्यंग्य, कविता, निबंध, समीक्षा, आलोचना, रेखाचित्र, संस्मरण आदि प्रकाशित होते थे। हिंदी के प्रतिष्ठित रचनाकार प्रायः इन्हीं विषयों में लिखकर पाठकों को उच्च कोटि का साहित्य उपलब्ध करवाते थे। सन् 1990 के आसपास प्रभात प्रकाशन ने सबसे पहले लोकप्रिय विज्ञान की पुस्तकें प्रकाशित कीं। ये पुस्तकें विज्ञान परिषद्, सी.एस.आई.आर. आदि वैज्ञानिक संस्थाओं से संबद्ध वैज्ञनिकों व विज्ञान विषयक लेखकों द्वारा लिखी गई थीं। इन पुस्तकों ने एक नए प्रकार के पाठक-वर्ग का निर्माण किया, जो विज्ञान के विविध आयामों, जैसे-पर्यावरण, भौतिकी, रसायन पर प्रामाणिक किंतु सरल-सुबोध हिंदी में पुस्तकें पढ़ना चाहते थे। बच्चों में विज्ञान के प्रति अभिरुचि विकसित करने में भी इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। ‘आओ मॉडल बनाएँ’, ‘आओ प्रयोग करें’, ‘ऐसा क्यों होता है’ जैसी पुस्तकों ने बालकों में विज्ञान के प्रति आकर्षण उत्पन्न किया, क्योंकि वे सुबोध शैली में प्रस्तुत इस सामग्री का अध्ययन कर स्वयं को अंग्रेजी-भाषी छात्रों के समतुल्य बनाने के लिए उद्यत होते थे, अन्यथा वे इन विषयों से वंचित रह जाते।

ऐसे ही व्यक्तित्व विकास और सैल्फ-हेल्प विषयों पर प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों के हिंदी अनुवाद ने भी एक बड़ा पाठक-वर्ग विकसित किया, जो अंग्रेजी में पुस्तकें होने के कारण इन्हें पढ़ नहीं पाते थे और जीवन में सफलता के नए अध्याय नहीं लिख पाते थे। शेयर बाजार, कुकरी, सैन्य विषयक तथा धर्म-राजनीति-सांस्कृतिक विषयों पर भी हिंदी के पाठकों को श्रेष्ठ पुस्तकें उपलब्ध करवाईं ताकि अध्ययन में वे किसी भी रूप में अंग्रेजी पढ़नेवाले पाठकों से पीछे न रहें।

पाठकों की अभिरुचि में इस आमूलचूल परिवर्तन का श्रेय प्रभात प्रकाशन को नहीं वरन् हिंदी के सभी प्रकाशकों को जाता है, जिन्होंने समय की आवश्यकता के अनुसार अपनी प्रकाशन नीति में यथोचित बदलाव किए।

फ्रंटलिस्टः साहित्य अमृत प्रभात प्रकाशन द्वारा शुरू की गई एक प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यिक मासिक पत्रिका है। यह पत्रिका हिंदी साहित्य में कैसे बदलाव ला रही है? 

प्रभातः एक समय जब हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाएँ ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’, ‘सारिका’, ‘दिनमान’ बंद हो रही थी, तब ‘साहित्य अमृत’ का प्रकाशन प्रारंभ होना सबके लिए एक आश्चर्य का विषय था। विगत 27 वर्षों में ‘साहित्य अमृत’ ने लेखकों और पाठकों के बीच एक सेतु का काम किया है। किसी भी विवाद और विकृति से दूर रहकर सकारात्मकता के साथ इसने हिंदी साहित्यिक जगत् की एक सार्थक मंच प्रदान किया है, जहाँ स्थापित तथा नवोदित सब प्रकार के रचनाकार अपनी रचनाएँ प्रकाशनार्थ देते हैं और पाठक उनका आस्वादन कर समृद्ध होते हैं। पत्रिका ने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, मीथडिया, लोक-संस्कृति, भारतीय भाषा, शौर्य, विश्व हिंदी सम्मेलन, कहानी, कविता, व्यंग्य आदि पर विशेषांक प्रकाशित किए हैं, जिन्हें पाठकों का अभूतपूर्व प्रतिसाद और प्रशंसा मिली। हर विशेषांक ने अपने आप में विषय को संपूर्णता में प्रस्तुत किया और अपार लोकप्रियता अर्जित की। पत्रिका में लंबे समय से ईनामी वर्ग पहेली प्रकाशित हो रही है, जिसमें पाठक बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और इससे उनकी शब्द-संपदा का विकास होता है। 

जब पत्रिकाएँ बंद होने लगीं तो नवोदित रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने का संकट उपस्थित हो गया। ऐसे में ‘साहित्य अमृत’ ने ‘नवांकुर’ नामक स्तंभ में इन रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित कर उन्हें संबल दिया, राष्ट्रीय मंच दिया। युवा रचनाकारों में लेखन की उत्कृष्टता विकसित करने की दृष्टि से ‘साहित्य अमृत’ ने ‘युवा हिंदी कहानी प्रतियोगिता’, ‘युवा हिंदी कविता प्रतियोगिता’ तथा ‘युवा हिंदी व्यंग्य प्रतियोगिता’ का आयोजन किया, जिसमें देश भर के 35 वर्ष तक के रचनाकारों ने सहभागिता की।

कुल मिलाकर 27 वर्षों की दीर्घ यात्रा में ‘साहित्य अमृत’ ने हिंदी के साहित्यिक जगत् को समृद्ध किया है और पाठकों को उत्कृष्ट पठन सामग्री उपलब्ध करवाकर अपना किंचित् योगदान दिया है।

फ्रंटलिस्टः नई शिक्षा नीति 2022 अंग्रेजी के बजाय पहली पांच कक्षाओं में क्षेत्रीय भाषा को शुरू करने पर जोर देती है। क्या आप मानते हैं कि यह छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा क्योंकि समाज का झुकाव पश्चिमीकरण की ओर हो रहा है, और अंग्रेजी भाषा की प्रमुखता भी प्रबल हो गई है?

प्रभातः नई शिक्षा नीति में प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण अंग्रेजी के बजाय क्षेत्रीय भाषा में करने के विचार को सबका भरपूर समर्थन मिल रहा है। हम किसी भाषा के विरोधी नहीं हैं पर निज भाषा, निज संस्कृति और परंपराओं पर बल देना तो अनुचित नहीं है। भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ, अंग्रेज चले गए, पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बना रहा और हिंदी तथा भारतीय भाषाओं को हीन दृष्टि से देखा जाने लगा। स्थान-स्थान पर अंग्रेजी माध्यम स्कूल खुल गए हैं, जहाँ अंग्रेजी में शिक्षण होता है, पर भारतीयता का ज्ञान नहीं दिया जाता। जब प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने का माध्यम क्षेत्रीय भाषा या हिंदी होगी तो शब्द, विचार, परंपरा, संस्कृति स्वतः बालमन पर अंकित हो जाएँगे। दिल्ली के प्रसिद्ध सरदार पटेल विद्यालय में कक्षा पाँच तक सभी विषयों (अंग्रेजी छोड़कर) की पढ़ाई हिंदी में होती है और कक्षा छह से अंग्रेजी में पढ़ाई प्रारंभ होती है। छात्र-छात्राएँ पाँचवीं तक हिंदी में दक्ष हो जाते हैं और छठी कक्षा में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने में उन्हें कोई असुविधा नहीं होती। अनेक देश हैं, जहाँ पूरी शिक्षा वहाँ की भाषा में होती है, वे तो अंग्रेजी तक नहीं बोल समझ पाते; क्या वे उन्नत नहीं है? क्या उन्होंने ज्ञान-विज्ञान में उत्कर्ष प्राप्त नहीं किया?

अतः अब समय आ गया है कि कक्षा पाँचवीं तक हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई प्रारंभ की जाए और शनैः.शनैः उच्च शिक्षा भी इन्हीं में हो। थोड़ा समय लगेगा, पर निरंतर इस पथ पर चलते हुए हम यह अभीष्ट लक्ष्य पा ही लेंगे।

फ्रंटलिस्टः क्या आप मानते हैं कि एनईपी 2022 शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए हिंदी प्रकाशक अच्छी तरह से सुसज्जित हैं?

प्रभातः एन.ई.पी. 2022 में शिक्षा प्रणाली में हुए परिवर्तनों के अनुरूप अपनी पुस्तकों में यथोचित तथा अपेक्षित संशोधन करने के लिए हिंदी प्रकाशक सक्षम हैं, तैयार हैं। इस अवसर का भरपूर लाभ उठाकर श्रेष्ठ और स्तरीय नई पाठ्य-पुस्तकें विकसित कर प्रकाशक राष्ट्र-निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं।

फ्रंटलिस्टः ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने हिंदी किताबों की बिक्री बढ़ाने में कैसे मदद की है?

प्रभातः ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने हिंदी पुस्तकों की बिक्री बढ़ाने में अत्यंत सराहनीय काम किया है। अब पुस्तकें सुदूर क्षेत्रों में भी आसानी से उपलब्ध हैं, जहाँ पुस्तकों की दुकानें ही नहीं थीं। पाठक अपनी रुचि की पुस्तकें घर बैठे ही कम्प्यूटर पर ब्राउज करके चुन लेते हैं और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से मँगा लेते हैं। सोशल मीसडिया के विस्तार के कारण भी नई प्रकाशित पुस्तकों की सूचना तत्काल प्रसारित हो जाती है और उस माँग को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पूरी कर देते हैं।

फ्रंटलिस्टः नीलसन बुकस्कैन डेटा के अनुसार, मूल हिंदी शीर्षकों की पुस्तक बिक्री हिंदी-अनुवादित पुस्तकों की तुलना में काफी कम है? इस पर आपका क्या ख्याल है?

प्रभातः  हिंदी साहित्य में अभी भी मौलिक हिंदी पुस्तकों की माँग अधिक है। हाँ, अंग्रेजी से हिंदी में अनूदित साहित्येतर विधाओं की बिक्री आंशिक रूप से अधिक है। विदेशी लेखकों के उपन्यास हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हुए हैं, पर उन्हें वह प्रतिसाद नहीं मिला जो अंग्रेजी या किसी अन्य विदेशी भाषा में मिला। जे.के. राउलिंग के हैरी पॉटर, विक्रम सेठ के ‘ए सूटेबल बॉय’, सलमान रश्दी के ‘आधी रात की संतान’, नोबेल पुरस्कृत सर वी.एस. नायपॉल के ‘आस्था के पार’, ‘भारत: एक आहत सभ्यता’ और ‘माटी मेरे देश की’ विश्व की अनेक भाषाओं में छपकर लाखों प्रतियाँ बिकीं, पर हिंदी में सामान्यता इनकी दूसरी आवृत्ति नहीं हुई। अपवादस्वरूप लुइस एल. हे की ‘यू कैन हील योर लाइफ’ पुस्तक की लगभग पच्चीस हजार प्रतियाँ बिक चुकी हैं।

फ्रंटलिस्टः आने वाले वर्षों में हिंदी प्रकाशन उद्योग में हम किन नवाचारों और अवसरों की उम्मीद कर सकते हैं?

प्रभातः हिंदी प्रकाशन उद्योग के सामने अपार संभावनाएँ हैं। भारत की आधी से अधिक आबादी हिंदी जानने.बोलने वाली है। अगर इसमें से मात्र एक प्रतिशत भी पुस्तकें खरीदकर पढ़ने लगे तो किसी भी अच्छी और रोचक पुस्तक की 25-30 हजार प्रतियाँ बिकना कठिन नहीं होगा। बात कुल मिलाकर ऐसा वातावरण बनाने की है, जिसमें पुस्तकें हमारे दैनंदिन जीवन का हिस्सा बन जाएँ और अपनी आय का एक निश्चित भाग हम पुस्तकों पर खर्च करें। अवसर अनंत हैं, बस केवल हमें पाठक की रुचि को ध्यान में रखना पड़ेगा। नवाचार के क्रम में पाठकों की पठन रुचि का परिष्कार करना, नए विषयों को चुनकर उन पर रोचक सामग्री प्रस्तुत करना; बाल साहित्य की अधिकाधिक सुंदर-सुचित्रित पुस्तकें भी बड़े अवसर उपलब्ध करवा सकती हैं।

फ्रंटलिस्टः लोगों को हिंदी प्रकाशन की प्रासंगिकता के बारे में अधिक जागरूक करने के लिए प्रभात प्रकाशन सोशल मीडिया का कुशलतापूर्वक उपयोग कैसे कर रहा है?

प्रभातः  आज सोशल मीडिया किसी भी विषय और वस्तु के बारे में जानकारी देने का सबसे सशक्त और कम लागत वाला माध्यम है। प्रभात प्रकाशन ने इस क्षेत्र में सक्रियता से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। हम अपनी नई पुस्तकों की जानकारी फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम तथा प्रभात प्रकाशन के अपने यू-टयूब चैनल के माध्यम से प्रसारित करते हैं। साथ ही विभिन्न समाचार.पत्रों के डिजिटल चैनलों जैसे-साहित्य तक, द प्रिंट आदि में पुस्तकों पर परिचर्चा करते हैं। हमारे विभिन्न पुस्तक लोकार्पण-समारोहों को हम फेसबुक, यू-ट्यूब लाइव के माध्यम से पाठकों को जोड़ते हैं, जिसके कारण पुस्तकों के प्रति रुचि भी बढ़ती है। हम सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी पुस्तकों के ‘प्री-पब्लिकेशन ऑफर’ ई-कॉमर्स पोर्टल्स पर प्रचारित करते हैं, जिससे पुस्तकों की माँग बढ़े।

अंत में मुख्य बिंदु यही है कि हम अपने बच्चों, परिजनों और मित्र-परिचितों को पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। एक सुपठित व सुविज्ञ समाज ही राष्ट्र की उन्नति और प्रगति का पथ प्रशस्त करेगा। इस अमृत काल में भारतवर्ष में पुस्तकों के प्रति एक विशेष स्थान और सम्मान सुनिश्चित करना एक सजग समाज का कर्तव्य भी है और यही अभीष्ट भी है।
 

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