Interview with Dr. Rashmi, Author of 'Ramkrishan Paramhans Ke 101 Prerak Prasang'
on Apr 01, 2022
डॉ. रश्मि ने हिंदी में 10 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं जिनमें आत्मकथाएँ, उपन्यास और स्वयं सहायता शामिल हैं। डॉ कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी पर उनके आत्मकथात्मक उपन्यास बहुत लोकप्रिय हैं।
अंग्रेजी में यह उनकी पहली किताब है।
वह एक लेखिका और शिक्षिका हैं। उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ और कहानियाँ प्रकाशित कीं। नवभारत टाइम्स और आज समाज में नियमित कॉलम, ट्रिब्यून के लिए पुस्तक समीक्षा। दूरदर्शन और अन्य चैनलों और ऑल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुतियाँ। विभिन्न चरणों में काव्य पाठ।
1. हम भगवान से परम् आशीर्वाद कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर- आपने कभी सोचा कि हम अपने माता-पिता, बुजुर्गों, रिश्तेदारों, मित्रों या किसी शुभचिंतक का स्नेह और आशीर्वाद कैसे प्राप्त करते हैं? उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करके। उनसे एक प्रेमपूर्ण रिश्ता स्थापित करके। ऐसे ही जब हम भगवान से एक रिश्ता जोड़ लेते हैं तो उनका परम् आशीर्वाद हमें स्वत: ही मिलने लगता है। अर्जुन, शबरी, सुदामा, मीरा, गोपियां आदि इसका साक्षात् उदाहरण हैं। इन सबने ईश्वर के साथ अटूट संबंध बनाया और जीवन भर उन्हीं के परम् आशीर्वाद से ओतप्रोत रहे।
2. स्वामी रामकृष्ण परमहंस हमेशा मानते थे कि "प्रेम की एक बूंद भी अगर किसी को मिल जाए वही सच्चा अनुराग है, ऐसे अनुरागी को संसार पागल कहता है।" आज के समाज में हम वास्तव में ऐसे लोगों से नहीं मिलते हैं। इस पर आप क्या कहना चाहेंगी?
उत्तर- प्रेम तो बस प्रेम है, उसमें चैतन्यता या पागलपन कहां? दरअसल जिनके हृदय में प्रेम नहीं बल्कि व्यापार है वे इस पागलपन को समझ ही नहीं सकते। या कहिए कि इसे पागलपन कहते हैं। प्रेम तो आज भी सभी को चाहिए लेकिन देना कोई नहीं चाहता। यदि हमने प्रेम के लेन-देन में भी गणित लगाई तो हम प्रेम का आनंद कभी नहीं पा सकते। जो ऊंचे स्तर का स्वाद चख लेता है उसे फिर निचले स्तर का स्वाद भाता ही नहीं लेकिन ऊंचे स्तर का स्वाद पाने वाले हजारों में कोई एक होता है। ऐसे लोगों को पहचानना बहुत मुश्किल है। और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ऐसे लोग अपने स्वाद का आनंद किसी को बता नहीं पाते। यदि बताना भी चाहें तो संसारी लोग उनके मनोभाव समझ नहीं पाते और उन्हें पागल कहने लगते हैं। दरअसल उनका यह पागलपन ही उनका परमानंद है। पागल वे नहीं बल्कि संसारी लोग हैं जो उसके आनंद रूपी पागलपन को समझ नहीं पाते इसलिए स्वीकार भी नहीं कर पाते। और आनंद की मस्ती में डूबा व्यक्ति या तो अपने आनंद को समझा नहीं पाता या फिर समझाना ही छोड़ देता है। यही कारण है कि ऐसे लोग हमारे इर्द गिर्द ही होते हैं लेकिन हम उन्हें नहीं पहचान पाते।
3. ज्ञान और अज्ञान, इसी के बीच उलझा हुआ मनुष्य इस दुनिया में भटकता रहता है। हम इस दौर से कैसे उबर सकते हैं?
उत्तर- जब तक मनुष्य अपने जीवन का उद्देश्य नहीं समझ पाता तब तक वह ज्ञान और अज्ञान के बीच ही उलझा रहता है। जिस दिन वह अपने उद्देश्य से परिचित हो जाता है फिर उसके लिए सुख-दुख, लाभ हानि, अपना-पराया कुछ मायने नहीं रखता। स्व का भान होते ही अज्ञान समाप्त हो जाता है। संसार में सारी जीवात्माएं भगवान की ही तटस्थ शक्तियां हैं। वे भगवान की बाहरी शक्ति महामाया और अंतरंग शक्ति योगमाया के बीच झूलती रहती हैं इसीलिए विद्या और अविद्या के बीच इस संसार के सारे प्रपंचों में उलझी रहती हैं। गुरु, साधु और शास्त्रों के अनुसार यदि संसारी कार्यों को भगवान की आज्ञा और उनकी सेवा मानकर किया जाए तो अविद्या नष्ट हो जाती है। यही असली विद्या है और वही वेद का सार भी है। संसार के सारे कर्म करते हुए भी अपने शास्त्रों का अध्ययन करें, ईश्वर के साथ एक प्रेम-भक्ति का संबंध बना के रखें। इस प्रकार से ज्ञान और अज्ञान से दूर निकल कर अपने जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
4. इस किताब में रखने के लिए आपको सभी प्रासंगिक जानकारी कहां से मिली?
उत्तर- मैंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस एवं स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया। रामकृष्ण मिशन के विद्वज्जनो का साथ प्राप्त हुआ। रामकृष्ण मिशन द्वारा मुझे स्वामी जी के जीवन से जुड़ी गहन व सटीक जानकारियां उपलब्ध हुईं। मेरा परम् सौभाग्य है कि मेरी इस पुस्तक में आशीर्वचन रामकृष्ण मिशन के सचिव पूज्य संतात्मानंद जी ने लिखा है एवं इसका लोकार्पण भी उन्हीं के कर कमलों से संपन्न हुआ था।
5. 'बेहतर जीवन के लिए आपको भगवान से कोई भौतिकवादी चीजें नहीं मांगनी चाहिए। वह आपको एक निश्चित समय में वह सब कुछ देगा जिसके आप हकदार हैं। इसके बारे में जागरूकता कैसे फैलाएं?
उत्तर- अपने जीवन के उदाहरण से ही देखिए, आज के समय में सभी के पास भरपूर भौतिक सामग्री है लेकिन क्या उनके जीवन में सुख है? शांति है? सांसारिक वस्तुएं तृष्णा हैं, और तृष्णा कभी संतुष्ट नहीं होती। क्या कभी ऐसा होता है कि एक चीज लेने के बाद आपकी इच्छा शांत हो जाती है? नहीं, क्योंकि मनुष्य हमेशा और अधिक पाने की लालसा में उलझा रहता है और अतृप्ति के साथ इस संसार से विदा हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी पिता की दो बेटे हैं। एक जिद्दी है लेकिन दूसरा शांत है। शांत बच्चा मिलने वाली हर वस्तु का आनंद उठाता है लेकिन जिद्दी बच्चा हर बात हठ से मनवाता है। कभी-कभी वह अपनी जिद में ऐसी चीजें भी मांगता है जो उसके लिए उचित नहीं हैं। जबकि पिता उचित और अनुचित के भेद को बखूबी जानता है। वह उनकी आयु और आवश्यकता के अनुसार हर चीज लाकर देता है। भेद बस इतना है कि शांत बच्चे को हर चीज प्रेम से प्राप्त होती हैं जबकि जिद्दी बच्चे को उतना स्नेह नहीं मिलता। इसीलिए ईश्वर से भी भौतिक चीजें नहीं मांगनी चाहिए। यदि उन्होंने हमें इस भौतिक संसार में भेजा है तो वह हमारी योग्यता, हमारी कर्मठता के अनुसार हमें हर चीज समय आने पर अवश्य देते है।
6. एक लेखक के रूप में अब तक का आपका सफर कैसा रहा?
उत्तर - मेरा अब तक का सफ़र बहुत अच्छा रहा लेकिन इस सफ़र को अभी मुझे बहुत दूर तक लेकर जाना है। इस पुस्तक को मिलाकर अब तक मेरी कुल चौदह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और तीन प्रकाशनाधीन हैं। किंतु मेरे जीवन का उद्देश्य किताबों की गिनती से नहीं बल्कि उनकी उत्कृष्टता से पूर्ण होता है। मैं समाज को कुछ ऐसा दे जाना चाहती हूं जो उन्हें सालों-साल राह दिखाए।
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