• Thursday, November 21, 2024

हरकीरत सिंह ढींगरा, लेखक - "चिकनी चुपड़ी"


on Aug 25, 2022
हरकीरत सिंह ढींगरा

लेखक के बारे में:

हरकीरत सिंह ढींगरा जी का जन्म, भारत के सबसे खूबसूरत राज्य हिमाचल प्रदेश में शिमला के पास बसे समर हिल्स की सुरम्य पहाड़ियों के बीच देश की आजादी के नौ साल बाद हुआ था। सिविल इंजीनियरिंग कर, 20 वर्ष से भी कम आयु में ही इन्होंने नौकरी शुरू कर दी थी। अक्टूबर 2005 में बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की स्नातक की डिग्री भी हासिल की। पहले प्राइवेट, फिर CPWD और BHEL में कुछ वर्षों तक कार्यरत रहे। इसके पश्चात महारत्न कम्पनी NTPC लिमिटेड में 33 वर्ष के लंबे अंतराल तक कार्यरत रहने के उपरांत, अगस्त 2016 में सेवानिवृत्त हुए।

इन दिनों वह अपने ख़ाली समय का सदुपयोग, अपने आस पास की वस्तुएँ, घटनाओं और प्रियजनों के साथ बिताए कुछ मधुर लम्हों एवं कुछ खट्टी-मीठी स्मृतियों को शब्दों में पिरोकर पन्नों पर उतारते हैं।

“चिकनी चुपड़ी” है कविता संग्रह, उनका लेखनी के क्षेत्र में प्रथम लघु प्रयास है।

Frontlist: "आकस्मिक कवि" से आपका क्या तात्पर्य है? कविताएँ लिखना आपका शौक है, या आपने उन्हें गलती से लिखा है. 

हरकीरत सिंह ढींगरा: "आकस्मिक कवि" मैं अपने आप को इस लिए मानता या कहता हूँ क्योंकि 60 वर्ष कि आयु तक मैंने अपनी लाइफ में कभी कुछ नहीं लिखा. कोई कविता पड़ने को मिली, अच्छी लगी पढ़ ली, साझा कर कर ली. "आकस्मिक" शब्द मैंने बॉलीवुड कि मूवी “Accidental Prime Minister” से लिया है. मैं ये मानता हूँ कि मेरा कविता लिखना आकस्मिक ही था क्यूंकि जैसा मैंने अपनी “चिकनी चुपड़ी – कविताओं कि खिचड़ी” में लिखा भी है कि, 19 जून 2016 को मैंने अपना बहुत प्रिय मित्र “दीपक राज सक्सेना” को अचानक खो दिया. उसका जाना मेरे लिए अकाल्पनिये था, अप्रत्याशित था, असहनिये था. उसके जाने ने मुझे एक शून्य में धकेल दिया था, आज तक मैं उसके बिछोहे से उबर ही नहीं पाया, शायद उभर ही न पाऊँ, त उम्र. लेकिन सबसे पहली कविता मैंने अपने उस मित्र कि यादों को, एहसासों को, उसके साथ बिताए पलों को, 43 सालों के सफर को याद कर, लिखी थी, कविता का शीर्षक था “और फ़्लैशबैक चलती रही”. मेरी ये कविता ने मुझे संभाला, समान्य होने का अवसर दिया. मेरी इस कविता को मेरे परिवार जन ने, मित्रों ने जो कि दीपक के भी मित्र थे और दीपक के परिवार वालों ने भी बहुत सराहा. 

उसके बाद अगस्त 2016 में  सेवानिव्रत हुआ तो साधारणत्या 2-3 दिन में एक कविता लिखने लगा. किसी वस्तु को देख, किसी वस्तुस्थिति को देख, किसी याद को याद कर, किसी एहसास से जो मन को छू गया, कोई आप-बीती याद कर कविता लिख लेता था. मैं किसी भी तस्वीर को देख अगर पहली दो पंक्तियाँ लिख लेता था तो मेरे को, उसे कविता का स्वरूप दे कर ही चैन आता था. इस प्रकार अगले 3-4 वर्ष में मैंने 175 से भी अधिक कवितायें लिख डाली. 

तो इस प्रकार में कवितायें लिखने को गलती तो नहीं कह सकता, लेकिन मेरे इस लेखन के सफर ने मेरे को एक नई दिशा दी, जीवन में आगे बढ्ने कि प्रेरणा अवश्य दी. शायद इसी लिए मैं अपने आप को एक “एक्सिडेंटल कवि” यानि "आकस्मिक कवि" कहता हूँ.

Frontlist: आपने अपनी कविताओं को ऐसे नाम क्यों दिए जो उतने ही सामान्य हैं जितने वे हो सकते हैं? ऐसा लगता है कि आपने उनका नाम लोगों की रुचि बढ़ाने के लिए रखा था.

हरकीरत सिंह ढींगरा: ज्यादातर, मेरी कविताओं का विषयवस्तु किसी चित्र/वस्तु को देख, किसी वस्तुस्थिति को देख, किसी याद को याद करके, किसी एहसास से जो मन को छू गया हो, कोई आप-बीती को याद करके, लॉकडाउन में मन कभी उदास हुआ, कोई किस्सा सुना, या कोई असामान्य आपबीती हुई, तो मैं जो कविता लिखता था, कविता का शीर्षक भी कविता से ही ढूंढ कर लिखता था. आज मैं कह सकता हूँ, कि मेरी कविता के शीर्षक रोचक थे, इसीलिए पाठकों कि रुचि भी बड़ी और मेरे को संतुष्टि भी मिली. बहुत से पाठकों ने अपने फीडबैक में मुझसे कहा कि, आपकी कविताओं के शीर्षकों के अलग होने कि वजह से ही कविता पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाया है.

Frontlist: पुस्तक में आपकी कौन सी कविता आपकी पसंदीदा और सबसे व्यक्तिगत है? और क्यों?

हरकीरत सिंह ढींगरा: जिस प्रकार शिल्पकार को, कुम्हार को अपनी हर कृति अच्छी लगती है, ठीक उसी प्रकार मेरे को अपनी हर कविता अच्छी लगी. एक का नाम लूंगा तो दूसरी नाराज़ हो जाएगी. सबसे व्यक्तिगत तो “और फ़्लैशबैक चलती रही” (46) ही है। इसके अलावा “पिता पुत्री में बंधी होती है इक डोर” (55); “बदलता रहता हूँ बार बार अपना अक्स” (60); “उम्र में दो साल छोटे हो”(105) और “कहाँ कोई फूल भेजता है खत में”(44) हैं. लेकिन और भी बहुत सी कवितायें मेरे को बहुत प्रिय है. 

कुछ और पसंदीदा कविताएं इस प्रकार हैं.......

भुट्टा, सौगात बरसतों कि (35); देखा ही नहीं उसको (36); पगड़ियाँ रंग बिरंगी (80); गुफ्तगू उनकी आईने से (84); इलायची - “छोटी मोटी” (87); मुझे मत बांधो, खूँटे से माझी (96); हँसते जख्म मूवी (121); खामोशीयों कि अपनी जुबां होती है (141); शहीद और उसके जन (157); मेहंदी और आचार” (177). 

ये सभी कविताएं मेरी पसंदीदा और व्यक्तिगत है, पर क्यों है लिखुंगा तो, एक पूरी किताब बन जाएगी. आप इन कविताओं को पढ़ेंगे तो आपको स्वयं ही एहसास हो जायेगा कि ये मेरी पसंदीदा और व्यक्तिगत क्यों हैं. 

Frontlst: आपको कब एहसास हुआ कि आप कविता में रुचि रखते हैं और आपकी कविताएँ सामान्य नामों पर आधारित होंगी? 

हरकीरत सिंह ढींगरा: जैसे की मैंने प्रश्न 1 में ऊपर बताया कि अपनी पहली कविता “और फ़्लैशबैक चलती रही” लिखने के बाद मैं रुका नहीं. मेरे को एक अच्छा माध्यम चाहिए था अपने आप को संभालने के लिए. 8-10 कवितायें लिखने के बाद मेरे को सकूँ भी मिला, दोस्त को खोने कि छटपटाहट को भी राहत मिली. तब मेरे को लगने लगा कि मैं नवांकुर कवि/लेखक की श्रेणी मैं आ गया हूँ.

रही बात कविताओं के नामों की, मेरे तो यही मानना है कि मेरी कविताओं के नाम सामान्य है, कविता में क्या है, ये दर्शाते हैं, पाठक का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं.

Frontlist: आपकी पुस्तक के शीर्षक चिकनी चुपड़ी कविताओं की खिचड़ी का उद्देश्य क्या है?

 हरकीरत सिंह ढींगरा: मेरी पुस्तक का शीर्षक “चिकनी चुपड़ी - कविताओं कि खिचड़ी” मेरी कविताओं के बारे में दर्शाता है. पुस्तक का नाम “चिकनी चुपड़ी” मेरी श्रीमति जी ने सुझाया था. कहा कि आप चिकनी चुपड़ी बातें बहुत करते हैं, तो यही नाम अच्छा रहेगा. “कविताओं कि खिचड़ी” टैग लाइन का सुझाव मेरा अपना था, क्योंकि पुस्तक छपने तक मैं करीब करीब 175 से अधिक कविताओं लिख चुका था. जिनमें से मैंने इस पुस्तक में करीब 101 कविताएं शामिल हैं. जैसे कि मैंने पहले भी बताया कि ज्यादातर मेरी कविताओं का विषयवस्तु किसी चित्र/वस्तु को देख, किसी वस्तुस्थिति को देख, किसी याद को याद करके, किसी एहसास से जो मन को छू गया हो, या कोई आप-बीती को याद करके, या फिर लॉकडाउन में मन कभी उदास हुआ, कोई किस्सा सुना, कोई असामान्य आपबीती हुई…..मेरी प्रत्येक कविता हर दूसरी कविता से भिन्न है, अलग है.   मेरी कविताओं का समूह में बहुत विविधता है इसीलिए इसको मैंने टैग लाइन दी “कविताओं कि खिचड़ी”. इस विविधता में ही खिचड़ी की तरहं शुद्ध घी जैसी सोंधी सोंधी खुशबू है – मेरी यादों की, एहसासों की, आपबीती की, मेरे ख़यालों की, दर्द की, आभास की, मेरे अवलोकन की, विमोचन की, प्रतिक्रिया की...... जी हां मेरी पुस्तक है “चिकनी चुपड़ी - कविताओं कि खिचड़ी”.

Frontlist: आपने अपनी पुस्तक में जो लघुकथा शामिल की है, उसमें क्या अद्वितीय है और क्या यह कविताओं से भिन्न है?

हरकीरत सिंह ढींगरा: मेरी पुस्तक के अंत में मैंने जो लघुकथा शमिल की है, वो लघुकथा ही है, कविता नहीं. उसमें अद्वितय तो शायद कुछ भी नहीं, हां मेरे को बहुत प्रिये है कुछ विशेष कारणो से:

  • “वो दस का नोट” मेरी सर्वप्रथम लिखी लघुकथा है;
  • इसको लिखने के बाद मेरे को अपनी लेखनी पर विश्वास आया और उसके बाद मैंने कुछ और भी लघुकथाएँ लिखी;
  • जब मेरी पहली पुस्तक “चिकनी चुपड़ी - कविताओं कि खिचड़ी” प्रकाशन में जा रही थी, मैंने अपना ये पहला प्रयास, मेरी पहली लघुकथा लिखी थी, जिसकी प्रतिकृया बहुत अच्छी मिली, जिसने भी पढ़ा, बहुत सराहा. मैंने सोचा क्यों न इसी पुस्तक के अंत में अपनी इस कृति को डाल दूं, पाठकों में मेरी  संभावित अगली पुस्तक के लिए उत्सुकता एवं इंतज़ार बना रहेगा. यकीन मानिए, लोग अक्सर पूछते हैं, अगली किताब कब आ रही है. आप इसे विपणन रणनीति (मार्केटिंग स्ट्रेटजी) भी कह सकते हैं.
  • जी हां..... ये मेरी कई दशक पुरानी आपबीती भी है. 

लघुकथा होने के नाते यह कविता से भिन्न तो है ही.

Post a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0 comments

    Sorry! No comment found for this post.